भारतीय चित्र कला का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का इतिहास | मानव ने जब प्रकृति की गोद में नेत्रोंमीलन किया होगा उसी समय से कला निर्माण के तारतम्य से अपने जीवन को सुखी व् समृद्ध बनाने की चेष्ठ की होगी | और निर्माण प्रक्रिया में उसने ऐसी कृतियों का सृजन किया जो उसके जीवन को सुचारू बनाने में सहायक हुयीं | कदाचित यही वह समय रहा होगा जब मानव मन में ललित भावनाएं जाग्रत हुई होंगी | उसने मूक भावनाओं को अनगढ़ पत्थरों के औजारों तथा  तूलिका से बनी टेढ़ी मेढ़ी रेखाकृतियों के रूप में भित्तियों और गुफाओं के समतल पर उकेर दीं | उसके जीवन की कोमलतम और संघर्षमयी जीवन की सजीव झांकियां आदि मानव की कलाकृतियों के रूप में आज भी सुरक्षित हैं |

जहाँ तक भारतीय चित्रकला के उद्भव और विकास की कहानी का प्रश्न है वहां हम इसे मानवोत्पत्ति के सामान ही पुरातन पाते  हैं | क्योंकि इतिहास की श्रंखला में प्रप्त भारतीय चित्र अत्यंत प्राचीन हैं | आधुनिक युग के अनुसार ये चित्र बहुत ही भद्दे हैं किन्तु जब हम तात्कालिक युग के दर्पण में झांकें तो इन चित्रों में किसी प्रकार का कोई दोष नही पाते हैं | भारतीय चित्रकला के उद्भव और विकास को हम प्राय : तीन भागों में विभक्त करते हैं |

प्रागैतिहासिक काल , वैदिक काल एवं पूर्व बौद्धकाल

प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला

प्रागैतिहासिक काल की चित्रकला के अनेक उदाहरण हमें गुफाओं में प्राप्त होते हैं |ये चित्र अपने समय की सभी विशेषताएं रखते हैं | भारतीय कला के जितने उदहारण अभीतक प्राप्त हुए हैं उनमे प्रागैतिहासिक काल के चित्रों की संख्या अधिक् है | इस काल के चित्रों में मानव ने अपने मन की कोमल भावनाओं को आखेट की गति और पशुओं की मनोहारी छवि का अनुभव किया है | जिसे उसने रंगों से सनी तूलिका की सबल टाँकी से गुफाओं की शिलाओं के कठोर समतल पर उकेर दिया हैं | इसप्रकार उसने अपने संघर्षमय जीवन के हर्ष एवं विषाद के क्षणों को अमर बना दिया है | कुछ मनीषी इस युग को पाषण युग इसलिए कहते हैं कि इस समय की सम्पूर्ण चित्रकला का कार्य गुफाओं की शिलाओं पर हुआ है |

वैदिक काल की चित्रकला

वैदिक काल की चित्र कला का प्रारंभ धातुयुग के साथ का मन जाता है | इस युग के चित्र समय के परिवर्तनों के कारण नष्टप्राय हो चुके हैं | इस युग के चित्रावशेष कहीं कहीं ही प्राप्त होते हैं |जिनके अधर पर ही कुछ लिखा जा सकता है | इस युग के उत्तम उदाहरण हमें “सरगुजा की रामगढ पहाड़ी और जोगीमारा “आदि गुफाओं से प्राप्त होते हैं | वैदिक काल में हुए चित्रकला के विकास की कहानी और जानकारी के लिए हमें वैदिक साहित्य जैसे रामायण ,महाभारत , गीता , वेदएवं उपनिषद आदि पर ही निर्भर रहना होता है |

पूर्व बौद्ध काल की चित्रकला

पूर्व बौद्धकाल की चित्रकला में विशेष उल्लेखनीय विकास नही हो पाया प्रतीत होता है | क्योंकि यैसे उल्लेख मिलते हैं कि स्वयं भगवान् बुद्ध ने शिष्यों को चित्रकला से दूर रहने का उपदेश दिया था | इस काल के साहित्य से ही हमें तत्कालीन चित्रकला के विकास का भान होता है | बौद्ध साहित्य में प्राप्त चित्रकला के उल्लेखों का भी अवलोकन कर लेना चाहिए |

चित्रलक्षणम  – इसमें हमें चित्र लक्षणों का उल्लेख मिलता है | एक अध्याय में अनुपात ,देवों , राजाओं की तुलना में सामान्य मानवों के चित्रों का अनुपात तथा मुखाकृतियों के सन्दर्भ में वर्णन मिलता है |

शिल्प शास्त्र – इसमें चित्रकला की तकनीक का वर्णन है | आज भी ये पुस्तक अपने मूलरूप में उपलब्ध है |

कामसूत्र – यह चित्र कला की प्रसिद्द पुस्तक है इसमें षडांग का वर्णन है जिसकी संक्षिप्त रूप रेखा निम्नलिखित है –

रूपभेद – सब प्रकार की आकृतियाँ और उनकी विशेषताओं की पहचान तथा षडांग का सम्बन्ध , प्रकृति का अद्ध्ययन , भवन निर्माण तथा प्रकृति की विशेषताओं से हैं |

प्रमाण – इसको आजकल (पर्सपेक्टिव ) कहा जाता है | इसमें अनुपात , शरीर रचना ,तथा दूर पास की वस्तुओं के अंतर का वर्णन है |

भाव – चित्रकार केवल चित्र का ही निर्माण नहीं करता वरन मन का भी अध्यन करता है |

लावण्य – चित्र में भावों के साथ -साथ लावण्य की योजना भी होनी चाहिए लावण्य का अर्थ वस्तु सौन्दर्य से होता है |

सादृश्य – चित्र चाहें जैसा भी हो किन्तु दर्शक भ्रमित ना हो |

वर्णिका भंग – इस सिद्धांत के अंतर्गत तूलिका और रंगों के सही प्रयोग का निर्देश है |

इस प्रकार की अन्य पुस्तकें भी हमें प्राप्त होती हैं | जो चित्रकला के विकास के अध्ययन में सहायक सिद्ध हो सकती है | जैसे भरतमुनि का रस सिद्धांत , चित्र्सूत्र  रूपगोस्वामी का सौन्दर्य सिद्धांत आदि |

यह चित्रकला के विकास की वह अवस्था थी जिसमे सौन्दर्य की अनुभूति के लिए और इसके द्वारा सृजन हेतु उन्मुक्त एवं उर्वर अवकाश प्राप्त हुआ | इस अवस्था में जो स्वच्छंद वातावरण था उसी के कारण आदिम कला में ओज एवं गति का अनुभव हम आज भी करते हैं | आदिम कला के चित्र आज नष्टप्राय हैं ,जो कुछ भी छुटपुट प्रागैतिहासिक काल के चित्र एवं प्राचीन कला साहित्य आज उपलब्ध है उसी के आधार पर कला के विकास का अनुमान लगाया जा सकता है | इस लोक वातावरण में से ही कुछ नगरीय सभ्यताओं का विकास हुआ | वह आज भी इतिहास के युगों को पार करता चला जा रहा है | चित्रकला के क्षेत्र में भित्ति चित्रों , टेम्परा , एवं फ्रेस्को माध्यमों के अतिरिक्त अनन्य माध्यमों से चित्रकारी करने का प्रचालन हुआ | सामग्री के परिष्कार से तकनीक में आशातीत उन्नति हुई | जिससे नये कला रूप भी जन्म ले रहे हैं | औद्योगिक उत्पादनों के कारण अनेक प्रकार की सामग्री प्रयोग में आने लगी है | फलत : चित्रकला निरंतर विकास की और अग्रसर है |

भारतीय सभ्यता में कला एक महत्व

भारतीय सभ्यता में कला एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। विशाल और विविध भूमि द्वारा प्रदान की गई अन्योन्य संवेदनशीलता के परिणामस्वरूप, यहां की चित्रकला ने सदियों से लोगों के मन को प्रभावित किया है और सांस्कृतिक विकास का मार्गदर्शन किया है। भारतीय चित्रकला का उद्भव प्राचीनकाल से होता है और यह समृद्ध इतिहास और विविधताओं का प्रतिष्ठान रखती है। इस लेख में, हम भारतीय चित्रकला के उद्भव और विकास के साथ-साथ इसके प्रमुख शैलियों और उदाहरणों की विस्तृत चर्चा करेंगे।

भारतीय चित्रकला का उद्भव विशाल और अत्यंत समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है। प्राचीनकाल में धार्मिक और मिथकों के विषयों पर आधारित चित्रकला व्यापक रूप से प्रचलित थी। यह चित्रकला धर्मीय और तांत्रिक अर्थों को सांस्कृतिक रूप से प्रदर्शित करती थी और जनसाधारण के मन को शांति, आशा, और ध्यान के साथ भर देती थी। प्राचीन भारतीय चित्रकला के उदाहरणों में अजंता, बाघ, एलोरा, कैवल्याधाम, और सोना नंदी की गुफाएं शामिल हैं।

भारतीय चित्रकला का विकास मध्यकाल से मुग़लकाल तक बहुतायत और विस्तार से हुआ। मुग़लकाल में, चित्रकला के क्षेत्र में एक नया मोड़ आया और इसे एक नया आयाम दिया गया। मुग़ल सम्राटों ने चित्रकला के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और उनके द्वारा स्थापित किए गए चित्रकला केंद्र भारतीय कला के स्वर्णिम युग की गणना की जाती है। मुग़लकालीन चित्रकला के अद्वितीय उदाहरणों में ताजमहल, फतेहपुर सीकरी के चित्र, और मिनारेतूती शामिल हैं।

इसके बाद, भारतीय चित्रकला ने अपने आधुनिक अवतार में अद्वितीय प्रगति की है। आधुनिक कालीन चित्रकला विभिन्न प्रायोजनों के लिए उपयोग होती है, जैसे स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक संदेश, राष्ट्रीय एकता, और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति। आधुनिक भारतीय चित्रकला के प्रमुख प्रतिष्ठित कलाकारों में रवींद्रनाथ टैगोर, अमृता शेरगिल, मीरा मुखर्जी, एएएरामन और टीयरा उद्दयामी शामिल हैं।

भारतीय चित्रकला एक विविध और समृद्ध धरोहर है जो हमारे आदिकाल से आज तक भारतीय समाज की रूचि को बनाए रखता है। यह भारतीय सभ्यता, ऐतिहासिकता, और धार्मिकता की अद्वितीय प्रतिमा है। चित्रकला के इस साहसिक और साहसिक क्षेत्र में विद्यमान अन्योन्य संवेदनशीलता का अनुसरण करते हुए, हमें गर्व होना चाहिए कि हमारी संस्कृति ने चित्रकला के माध्यम से सामरिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचारों को प्रभावित किया है।


भारतीय चित्रकला अपनी अनोखी परंपराओं, विविधताओं और प्रामाणिकताओं के साथ एक अद्वितीय संपत्ति है। इसका उद्भव प्राचीनकाल से हुआ है और इसका विकास मध्यकाल से आधुनिक काल तक सामरिकता, सांस्कृतिकता, और राष्ट्रीय अभिव्यक्ति के साथ हुआ है। यह चित्रकला विभिन्न क्षेत्रों में आपसी समझदारी, समानता, और संवेदनशीलता का प्रतीक है। भारतीय चित्रकला का आदान-प्रदान हमारी संस्कृति के साथ हमेशा जारी रहेगा और उसका महत्त्वपूर्ण योगदान हमारे समाज और दुनिया के विचारधारा को संवेदनशील और समर्पित बनाए रखेगा।

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